10/18/2010

ट्यूलिप और सोनिया

ट्यूलिप और सोनिया

ट्यूलिप नहीं है वह फूल
जिसे सोनिया ने सींचा है, संवारा है
कैमरे की आंखों से
वह तो कोमल भी नहीं है और फूलों की तरह
उसे मालूम भी नहीं कि
उसके नाम के साथ है बदनुमा दाग

ब्लैक ट्यूलिप नाम दे दिया गया उस फिल्म को
जिसकी पृष्ठभूमि है अफगानिस्तान
जिसमें दर्शाया गया है तालिबान के आतंक को
कत्लेआम और अपहरण की
मुकम्मल तस्वीर है जहां

शूटिंग शुरू होने से पहले ही
हीरोइन जरीफा के काट दिए गए थे पैर
गुमनामी जिंदगी जीने के लिए
मजबूर हो गई थी वह
उसकी और उसके रिश्तेदारों की हत्या
करने की दी गई थी धमकी

खौफ के डर से भाग गया था
कैमरामैन कीम स्मिथ
ड्रेस डिजाइनर, डायरेक्टर
सभी हो गए थे लापता
जब फोड़े गए थे बम
और चली थीं गोलियां
क्रेडिट कार्ड से हो रहा था
सारा का सारा काम

पर्दे पर उतारी है सोनिया ने
‘कवियों का कोना’ नामक रेस्तरां की कहानी
बात करते थे संस्कृतिकर्मी और बुद्धिजीवी
कहानी और कविता का होता था पाठ
चाय और सुरा की चुस्कियां लेकर वहां

घर तक रख दिया था गिरवी
सभ्यता-संस्कृति के दुश्मनों से लेती रही थी लोहा
आखिर आतंक से जनानी जंग का यह कारनामा
एरियाना सिनेमाघर के बड़े पर्दे पर जब सबके सामने आया
तब तालियां ही तालियां बजती रहीं
लेकिन थी वहां आंसू की ए क बूंद जिसे किसी ने नहीं देखा।

(सोनिया नासरी कोले के लिए जिन्होंने ‘ब्लैक ट्यूलिप’ नामक फिल्म बनाई। इस फिल्म को आस्कर अवार्ड के लिए अफगानिस्तान सरकार की आ॓र से विदेशी फिल्म की कैटोगरी में नामांकित कर भेजा गया)

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