6/01/2009

बच्चों के गुम होने का सवाल

बच्चों के गुम होने का सवाल
जिस तरह पिछले कुछ समय से दुनियाभर में बच्चों के गायब होने के मामले बढ़े हैं, वह काफी चिंता का विषय है। विकासशील देशों से लेकर विकसित देशों में हर साल लाखों की संख्या में बच्चों के गायब होने की घटनाएं सामने आयी हैं। दरअसल भारत, चीन से लेकर अमेरिका तक में बच्चों के सौदागर बसे हुए हैं जो न सिर्फ इनसे भीख मंगवाने का काम कराते हैं बल्कि उन्हें बतौर सेक्स वर्कर का पेशा अपनाने के लिए मजबूर करते हैं।देश की बात करें तो राष्ट्रीय अपराध सूचना केंद्र के मुताबिक, सिर्फ 2007 में दिल्ली के कुल दस जिलों से 5,600 बच्चे गायब हुए।
पिछले माह एक मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने बाल अधिकार को लेकर बनी समिति को एनसीआर में बच्चों के गायब होने के मामले में तीन महीने के भीतर रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है। इस मामले में हाईकोर्ट के सामने दिल्ली पुलिस ने जो तथ्य पेश किए हैं, उसके मुताबिक जून, 2008 से लेकर जनवरी, 2009 तक राजधानी से कुल 2,210 बच्चे गायब हुए। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में हर साल दस लाख बच्चे गायब हो रहे हैं।
2004 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट में कहा गया कि देश में सबसे अधिक बच्चे झारखंड, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, बिहार और उड़ीसा राज्यों में गुम होते हैं।ऐसा नहीं है कि बच्चों के गुम होने जैसी समस्या से सिर्फ भारत की जूझ रहा है। ब्रिटेन की हालत यह है कि यहां हर साल करीब तेरह हजार बच्चों के लापता होने के मामले सामने आये हैं। चीन में 2000 में हुए जनगणना के दौरान पाया गया कि यहां से करीब 3।7 करोड़ बच्चे गायब हैं। अफ्रीकी देशों की हालत भी इससे इतर नहीं है। 2007 के रिकार्ड बताते हैं कि बेल्जियम में 2928, रोमानिया में 354, फ्रांस में 706 बच्चों के लापता होने के मामले दर्ज कराए गए हैं। जहां तक अमेरिका की बात है, वहां भी बच्चे इससे अछूते नहीं है। अमेरिकी सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक, 2007 में वहां 4,802 बच्चों के गायब होने कर सूचना पुलिस को थी। इतना ही नहीं, 1979 से लेकर 1981 में वहां कई हाई प्रोफाइल बच्चे भी गायब हुए और सालों बाद भी उनका कोई अता-पता नहीं लगा। यही कारण है कि अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने 1983 में लोगों को जागरूक करने के लिए वर्ष में एक बार ‘नेशनल मिसिंग चिल्ड्रेन डे’ मनाने का निर्णय लिया।
गौरतलब है कि ये वे मामले हैं जो विभिन्न देशों की पुलिस ने दर्ज किये हैं। लेकिन भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में अधिकतर मामलों को पुलिस दर्ज ही नहीं करती है और मामला दब कर रह जाता है। बहुत कम ही ऐसे मामले सामने आते हैं जिनमें स्वयंसेवी संस्थाएं रूचि लेकर बच्चों को खोजकर बाहर निकालती हैं। बच्चों के मामले में सबसे दुखद स्थिति यह है कि कई मामलों में उनके मां-बाप ही बच्चों का सौदा करते हैं।
‘बचपन बचाआ॓’ आंदोलन की 2007 की रिपोर्ट के मुताबिक, जानवरों से भी सस्ती दर में बच्चों को बेचा जा रहा है। जहां एक भैंस की कीमत कम से कम पंद्रह हजार रूपए होती है वहीं देश में बच्चों को पांच सौ रूपए से लेकर 25 सौ रूपए में आसानी से बेचा जाता है। दुनिया के विभिन्न कोनों से बच्चों के सिर्फ गायब होने का सवाल नहीं है। बल्कि सवाल है कि जो उम्र खेलने-कूदने की होती है उस उम्र में बच्चों को कहां भेजा जा रहा है। अधिकतर बच्चों से या तो मजदूरी कराई जाती है या सेक्स वर्कर का पेशा कराया जाता है। जिस उम्र में बच्चों को स्कूल जाना चाहिए, उस उम्र में उन्हें भीख मांगने के लिए मजबूर करना तो आम बात है।
भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में बच्चों के गुम होने के मामले इस बात के गवाह हैं कि अधिकतर बच्चे जिंदगी में दोबारा अपने मां-बाप में नहीं मिल पाते हैं। और तो और, मनुष्य की दरिंदगी की हद इस कदर है कि बच्चों के अंगों का कारोबार भी दुनिया में बड़े पैमाने पर चल रहा है और ऐसे में उन्हें मौत के घाट भी उतारा जाता है।
बहरहाल, सिर्फ भारत ही नहीं पूरी दुनिया के सामने मासूमों के गायब होने का मामला एक गंभीर चुनौती है। पुलिस के साथ-साथ आम लोगों को इस मसले पर जगना होगा। स्वयंसेवी संस्थाओं से लेकर प्रशासन को गंभीरता बरतनी होगी, कड़ी से कड़ी नीतियां बनानी होगी। बच्चों को गायब करने के मामले में दोषी पाए जाने पर सख्त से सख्त सजा का प्रावधान हो। किसी भी देश का भविष्य बच्चों पर निर्भर करता है और यदि बच्चे ही नहीं रहेंगे तो फिर उस देश का भविष्य क्या होगा।
साभार : राष्ट्रीय सहारा

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