4/15/2009

मंडल ने अपनी नहीं बदली देश की तस्वीर

मंडल की आंधी ने राष्ट्रीय राजनीति की तस्वीर बदलकर रख दी, लेकिन मंडल ख़ुद अपनी तस्वीर नहीं बदल पाए। मंडल कमीशन के चेयरमैन बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल बिहार के मधेपुरा से सांसद बने थे। यही वह वक्त था जब देश में जनता पार्टी की सरकार थी और प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने हासिये से बाहर रह रहे लोगों को आरक्षण देने के लिए कमीशन का गठन किया था। अपनी रिपोर्ट के जरिये राजनेताओं से लेकर आम आदमी की तकदीर तो उन्होंने बदलकर रख दी लेकिन इसके बाद वे संसद का मुंह नहीं देख पाए।बी पी मंडल बिहार के मधेपुरा संसदीय क्षेत्र से दो बार सांसद बने। पहली बार १९६७ में उन्होंने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (संसोपा) के टिकट पर करीब ५१.७२ फीसद वोट हासिल कर जीत दर्ज की थी. दूसरी बार १९७७ में उन्होंने बीएलडी के टिकट पर ६५.४४ फीसद वोट पाकर संसद की राह पकडी। दिलचस्प है कि वे सिर्फ़ ४८ दिन
बिहार के मुख्यमंत्री रहे जबकि इनसे ठीक पहले एक मुख्यमंत्री ने सिर्फ़ तीन दिन काम किया था। उनका राजनीतिक करियर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से शुरू हुआ था लेकिन आपातकाल के बाद वे जनता पार्टी में शामिल हो गए।
दिसम्बर, १९७८ एक ऐसा समय आया जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल को अन्य पिछडे वर्ग की स्थिति और सुधार को लेकर एक रिपोर्ट तैयार करने का जिम्मा सौपा। मंडल की अध्यक्षता में गठित समिति में पॉँच सदस्य थे। समिति ने अपनी रिपोर्ट १९८० में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सौपी लेकिन इसे एक दशक बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह ने लागू किया। दिलचस्प है की मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू कराने और इस पर राजनीति कर अधिकतर दलों ने जमकर फायदा उठाया। लेकिन इसका फायदा बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल को नहीं मिला। १९७१ के लोकसभा चुनाव में इन्हें जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा। १९७७ में फ़िर मधेपुरा संसदीय क्षेत्र में जीते लेकिन १९८० के चुनाव में मुंह की खानी पडी। उस बार तो उन्हें सिर्फ़ १३.५० फीसद वोट ही हासिल हुआ और वे तीसरे स्थान पर रहे।
जानकारों का मानना है कि और राजनेताओं के मुकाबले अपने संसदीय क्षेत्र में मतदाताओं पर उनकी पकड़ कम थी और बहुत से लोगों के आँखों का तारा वे जीवित रहते नहीं बन पाए। यह अलग बात है कि मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद उनके नाम पर राजनीति करने वालों ने एक खास तबके पर जबरदस्त पकड़ बनाई है। बिहार की राजनीति में कम पकड़ होने के बावजूद मंडल का नाम राष्ट्रीय राजनीति में रिपोर्ट के कारण याद किया जाता रहेगा। क्योंकि इसके बाद भारत की राजनीति की दशा और दिशा दोनों में जबरदस्त बदलाव आया जो अब भी मौजूद है। गौरतलब है की मंडल के नाम पर ही शरद यादव और लालू प्रसाद जैसे नेता भी मधेपुरा की जनता को लुभाते रहे हैं और सांसद बनते रहे हैं।

1 comment:

दिनेशराय द्विवेदी said...

मंडल का उल्लेख सही समय पर किया गया।